Tuesday, October 22, 2019

मनुष्य गौरव।

मनुष्य गौरव दिन-१९अक्टूबर १९२०
(पांडुरंग शास्त्री आठवले जन्मदिन)

अधः पतित हुई मनुष्य जाती
कफ़ल्लकता की चोटी पर थी।
आत्मनिष्ठा-ईशनिष्ठा से प्रेरित;
वो जीवन सुगंधी कर गए!
वो तेज पथ पर चल पड़े थे,
 तो पांडुरंगी बन गए।

मनुष्य को ऋषिसंकल्प से जोड़
"भगवान तो तेरे भीतर"
 यह गौरव खड़ा कर गए
तो पांडुरंगी बन गए।

"नाहं पशु ;अहम मनुष्य:"
आत्मसन्मान जागृत कर गए
वो तेज पथ पर चल पड़े थे,
 तो पांडुरंगी बन गए।

"दूजा अब नहीं है दूजा;
 वह तो तेरा भाई!"
सबंध बनाकर दैवी नाता,
परसन्मान का सिंचन कर गए,
वो तेज पथ पर चल पड़े थे,
 तो पांडुरंगी बन गए।

वो तेज पथ पर चल पड़े,
 तो पांडुरंगी बन गए।

गौरव मनुष्यों का साकार करने
वो यज्ञ बन कर जलते रहे,
आओ हम कहे साथ मिलकर
हे तेज पथ पर चलनेवाले
"अमृतस्य पुत्र"
 दादाजी नमस्तुभ्यं।
 दादाजी नमस्तुभ्यं।

-चेतन कोठावदे

स्वतंत्रता।

हे मातृभूमि के वीर तुझे,
माँ भारती पुकारती।
क्यों जखड़े हो निराशाओं से..
क्यों झुकें हो हताश होके..
क्या भूल गया वह इतिहास तू?
जहाँ जन्में थे वीर शिवाजीऔर तानाजी।
क्या भूल गया वह कालापानी
जो पीकर अमर हुए सावरकरजी
जो ले आये थे लहूँमे ही स्वतंत्रता
तू भी तो उनकाही वंशज...।

अत्याचारों और भ्रष्टाचार से,
अन्यायों की चीत्कार से,
कभी हिंसा से, तो कभी व्यभिचार से
आज क्रोधित हो उठी वो..
ललकार उसकी सुन जरा...
हे मातृभूमि के वीर तुझे,
माँ भारती पुकारती।

स्वतंत्रता की मोहर उठाके
केवल जी रहे जो लाचारी
मज़बूरी के सारे गुलाम बनके
भूल गए शायद; क्या थी अपनी संस्कृति।
विवशता की उन जंजालोसे
एक ध्वनि जो है उठ रही...
सुन उसे जरा..
हे मातृभूमि के वीर तुझे,
माँ भारती पुकारती।

साहस की परिभाषा अब
स्वार्थ में लिपटी हुई,
पद की लालचता तो देखों...
 जो देश से ही गद्दारी है,
 जो अपनों से जातिवाद है,
 जो मिट्टी के टुकड़ों बांटे;
  वही शक्तिमान है
इस व्यथा से जो खूब पीड़ित वो..
हे मातृभूमि के वीर तुझे माँ ने पुकारा है।

हाथ में मशाल ले अब तू,
कर शुरू युग परिवर्तन का
कर प्रतिकार ऐसा की,
तोड़ दे विकारों की बेड़ियां
खड्ग तेरा तप उठे यूँ
कर विकृतियों पर प्रहार,
उठ खड़ा हो फिरसे नौजवान
की कर उत्थान सत् विचारोंका
कर सिंचन तू संत-ऋषी परंपराओं का

कर स्वतंत्र फिरसे इस मिट्टी को यूं
जो अपनोनेही छीनी है।

सिर उठाकर फिर कहे सकेंगें..
स्वतंत्रता की माँ भारती
स्वतंत्रता की माँ भारती।।

-चेतन कोठावदे।