Sunday, August 23, 2020

पूजन हो गुण का..

मंगल की वो मूर्ती है,

चार भुजा धारी है

सबके दूख हारणे

धरती पर आयी है !


देख उसकी तेज को,

अज्ञान भय से कापता

देख उसकी चार भुजा,

दुष्ट भी है भागता!!


सृष्टी का वही श्री है,

स्वयंभू महाज्ञानी है

आदि अंत एक है..

ओंकार की गुंज है!!


मोरया है सन्मान जिनका 

और मूषक सवारी है,

सूक्ष्म को भी देख लेते

आंख उनकी तेज है !


नाम वक्रतुंड है,

दूर जिनकी शूंड है!

हर विघ्नको पढ सके 

ऐसी दूर उनकी सोच है!


उदर उसका लंब है

रहस्य जिसमे खोल है

स्थितप्रज्ञ उसको देख

लगे गीता साकार है..!


पूजन हो उनका

भक्ती श्रद्धा भाव से!

विकार त्याग के करो

स्वागत जल्लोश से!


बुद्धी की देवता को

न पूजना निर्बुद्धसा,

पूजन हो गुण का

नाही सिर्फ मूर्ती का!!


- चेतन कोठावदे

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