धुन बजाओ कुछ कान्हा ऐसी,
की मन पावन हो जाये...!!
सूर संगम कुछ कर दो ऐसा,
की तन स्वरगंगा मे नहाये..!!
शिश झुकाऊ चरणोमे तेरे
तो जीवन तेरा बन जाये!!
न आये कभी हमे निराशा
भले घना अंधेरा छा जाये
होंगे दुःख हजारो चारो ओर
चाहे गीरे हमपे तुफानी लेहर,
तू कृष्ण बनके सारथ्य कर
तू आशा बनके मनमें झलक
यही खुमारी है अब दिलमें;
की, 'तूही है संग हमारे',
है जटील यह संसार लेकीन;
जो तुम हो खडे, तो हम क्यो डरे?
- चेतन कोठावदे
"तू हि हैं संग हमारे।।।"
ReplyDelete👌👌👌
Vaah
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteमस्त एकदम��
ReplyDeleteSuperb
ReplyDeleteMast
ReplyDelete👍
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteश्री हरी कृपेने अजुन लेखन कार्य चालू राहो
ReplyDeleteSundar....
ReplyDeleteSundar...
ReplyDeleteअप्रतिम..👌
ReplyDeleteMast
ReplyDeleteवाह मस्त एकदम
ReplyDeleteGood one
ReplyDeleteबहोत खूब 👌👌
ReplyDeleteBest
ReplyDeleteBest hai sirji
ReplyDeleteखुप सुंदर आहे सर .....
ReplyDeleteExcellent
ReplyDeleteNce bro
ReplyDeleteह्या गीत लेखना मागे स्वाध्यायची बैठक,आवड,असावी असे जाणवते,असेच यापुढे चालू राहावे हीच कामना.शाम (भाई)मामा.
ReplyDeleteधन्यवाद मामा
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