Tuesday, March 5, 2024

मन की सरगम

मेरे मनके सात सितारे
मेने सरगम से छेडे है,
गात गीत बन जाये ऐसे,
 सूssर तेज से बूने है

वो अपने धून मे रंग चढाये
तो संग हरी के कहलाये,
वो पावन गंगा के लहरोंमे
सूरज-सूरज रोशन पाये!

हर व्यथा का जो गीत बने वो
निश्चय की परिभाषा है,
गूंज उठेगी कण कण से अब
बदल-बदल का ही नारा है

केवल प्रेम कविता गाये
वो स्वर क्या क्रांती लायेंगे?
कण कण मे जब राम बसा है
तो स्वर भी पराक्रम गायेंगे 

छूट जायेंगे मोह सारे
वासना से मुक्ति ले,
मन की क्रांती मन के स्वर है
बाकी सब तो वेहेम वेहेम मे !
 
- चेतन कोठावदे
Mh 15/14

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